आज के इस भौतिकतावादी युग मे आध्यात्मिकता, आत्मिक, अशारीरिक, मायामय जैसे शब्द कहीं गूम हो गए हैं। मनुष्य अपनी स्वयं की खोज छोड़कर इस मायामयी संसार मे उपलब्ध भौतिक वस्तुओं के पीछे भाग रहा है। वर्तमान काल मे अपनी चेतना को छोड़कर मानव हर वस्तु, हर संबंध, हर दिखने वाली माया को परिष्कृत करना चाहता है। आप जीवित हैं तो क्यों हैं ? आपके जीवन का मूल उद्देश्य क्या है? आपने परम सत्ता को जानने का कभी प्रयास किया है? शायद आप लोगों मे से कुछ ही इसका सही उत्तर दे पाएंगे। मानव योनि मे जन्म लेकर हम आज पशुओं से भी बुरा बर्ताव करते हैं, प्रकृति ने जो भी दिया है उसका तिरस्कार कर इस भौतिक सुख को अपने अधीन बनाने के लिए हम निम्न स्तर की और बढ़ते चले जा रहे हैं। परम सत्ता के अधीन अगर सब कुछ है तो उसके द्वारा उत्पन्न सम्पूर्ण माया मयी संसार भी उसी के अधीन ही अपने उत्तम ग्राहक का चयन करेगा। हम कहते हैं ये मेरा है , वह तेरा लेकिन ये कभी नहीं विचारते की जो आज मेरा है कल किसी ओर का जो आज उसका है वह किसी ओर का। आध्यात्म यही सिखाता है ,गीता का ज्ञान सर्वोच्च ज्ञान इसीलिए है क्योंकि वह आत्मा की बात करता है न की नष्ट होने वाले शरीर की, वस्तुओं की या संबंधों की। ब्रह्मांड मे एक ही संबंध है और वह है आत्मा का परमात्मा का जिसने समझ लिया वह तर गया जो नहीं समझा वह इस मायानगरी मे घूम गया। अतः हम अपने आप को जिस क्षण खोज लेंगे उस क्षण ही उस परमात्मा को और उसकी श्रष्टि को खोज लेंगे।